आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

भगवत रावत की कविता- हे बाबा तुलसीदास

कविता
                
                                                         
                            चोर की चोरी
                                                                 
                            
साहूकारी साहूकार की
दासता दास की
और अफसर का अफसरी

बेईमानी बेईमान की
दरिद्रता स्वाभिमानी की
ग़रीब की ग़रीबी
और तस्कर की तस्करी

दिन दूनी रात चौगुनी
फल फूल रही
कमाई कुकरम की
और अजगर की अजगरी

मज़े में हैं यहाँ सब
हे बाबा तुलसीदास
कविताई ससुरी अब
कहाँ जाय का करी।

हमारे यूट्यूब चैनल को Subscribe करें। 

16 घंटे पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर