जा रहा हूं जीवन की खोज में
सम्भवत: मृत्यु मिले
सम्भवत: मिले एक सभ्य
सुसंस्कृत जीवन-व्यवहार
सांझ मिले बांझ
आंच न मिले
जीवन की राख मिले
दसों-दिशाओं में ।
क्या ऐसा नहीं हुआ कई बार
कई तथागतों के साथ
कई शताब्दियों में
निरन्तर !
जब भी वह निकला उल्लास
लास भौतिक जीवन पर इठलाता
मिली उसे निरी उदासीनता
मिला उसे कठिन कंकाल
मिला उसे भव्य अन्तराल ।
क्या वह नहीं लौटा
विकल-विकल लिए
हाथों में अपना ही तरल रक्त
क्या उसकी आंखों से नहीं
टूटा, निपट उदास टिमटिमाता
सितारा एक?
पृथ्वी थोड़ी और
समृद्ध क्या नहीं हुई
उसके बाद !
साभार - कविताकोश
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2 years ago
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