अँजुरी भर धूप-सा
मुझे पी लो !
कण-कण
मुझे जी लो !
जितना हुआ हूँ मैं आज तक किसी का भी -
बादल नहाई घाटियों का,
पगडंडी का,
अलसाई शामों का,
जिन्हें नहीं लेता कभी उन भूले नामों का,
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