ढँक देता है प्रकाश अपनी मरणशील दीप्ति से तुम्हें
अनमने फीके दुख खड़े हैं उस राह
साँझ की झिलमिली के पुराने प्रेरकों के विरुद्ध
वे लगाते चक्कर तुम्हारे चारों तरफ़
वाणी रहित, मेरी दोस्त, मैं अकेला
अकर्मण्य समय के इस एकान्त में
भरा हूँ उमंग और जोश की उम्रों से,
इस बरबाद दिन का निरा वारिस
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