वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किताब 'धूप जनवरी की फूल दिसम्बर के' से आपके लिए चुनिंदा शेर
भला हुआ कि कोई और मिल गया तुम सा
वरगना हम भी किसी दिन तुम्हें भुला देते
- ख़लीलुर्रहमान आज़मी
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
- बशीर बद्र
शाद को क्या बर्बाद करोगे
लो दिल लो क्या याद करोगे
- असर लखनवी
अब थकन पाँव की ज़ंजीर बनी जाती है
राह का ख़ौफ़ ये कहता है कि चलते रहिए
- मेराज फ़ैज़ाबादी
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