हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन मुखर होकर कहते हैं कि जो आदमी तमाम कोशिशों के बाद भी सफल नहीं होता वह किताब लिखने की कोशिश करे। उसे बड़ी सफलता मिलेगी। वह अपने अंदर साहित्य का शौक पैदा होने की वजहों को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मैं असफल हुआ और साहित्य लिखने लगा। मेरा जन्म डेनमार्क के ओडेन्स में 1805 में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। लेकिन मेरे पिता ने, जो जूते गांठते थे, मेरी कल्पनाशीलता को नई उड़ान दी। रविवार को वह मुझे थिएटर ले जाते थे और कहानियों एवं नाटकों के अंश पढ़कर सुनाते थे।
कमरे की दीवारें तस्वीरों से ढकी थीं
मेरे बचपन का घर एक छोटा-सा कमरा था, जिसकी लगभग पूरी सतह मेरे पिता के लिए कार्यस्थल थी। घर में एक बिस्तर और एक बेंच थी, जिस पर मैं सोया करता था। लेकिन कमरे की दीवारें तस्वीरों से ढकी थीं। मेरा बचपन बेहद अकेलेपन में बीता, मैं दिन भर कठपुतलियों की पोशाक तैयार करता था। किशोर उम्र में ही फिल्मों में काम करने के लिए मैं कोपेनहेगन चला गया। लेकिन मुझे उसमें सफलता नहीं मिली।
मैंने अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा
मैंने अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा, हालांकि मुझे अपने जीवन की विफलताओं ने ही पहली किताब लिखने के लिए प्रेरित किया था। कोपेनहेगन में पहले वर्ष के दौरान मैंने बैले-नर्तक, अभिनेता या गायक के रूप में अपने पैर जमाने के लिए काफी संघर्ष किया। मैं न केवल अपनी जीविका के लिए संघर्ष के लिए तैयार था, बल्कि कोई भी जोखिम लेने के लिए तैयार था। वहां रॉयल थियेटर के निर्देशक जोनास कॉलिन ने मेरी मदद की। उन्होंने कुछ पैसे इकट्ठा कर मुझे फिर स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा। हालांकि स्कूल का अनुभव अच्छा नहीं रहा, लेकिन 1828 में मुझे कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में दाखिले की मंजूरी मिल गई।
मैंने कविता, उपन्यास, नाटक और बाल साहित्य लिखना शुरू कर दिया
मैंने कविता, उपन्यास, नाटक और बाल साहित्य लिखना शुरू कर दिया। मेरे पहले नाटक को थियेटर में मंचित भी किया गया। मैंने पारंपरिक शैली और विषय वस्तु से अलग चीजें लिखीं। कहानी कहने के लिए मैंने मुहावरों और आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया। मैंने भावनाओं और विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया और कहानी कहने की स्वाभाविक क्षमता को अपनी कल्पनाशीलता के साथ जोड़ा। शुरू से ही मेरे दिल की इच्छा थी कि मैं कला की दुनिया में सफलता हासिल करूं। बेशक मैं अभिनेता नहीं बन पाया, लेकिन लेखन के जरिये मुझे वह सफलता और प्रसिद्धि मिली। चाहे गरीबी से जितना भी जूझना पड़े, लेकिन अगर आपके पास अपने सपनों को साकार करने का साहस है, तो खुद को स्थापित करने से कोई नहीं रोक सकता है।
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कमरे की दीवारें तस्वीरों से ढकी थीं
7 वर्ष पहले
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