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Firaq Gorakhpuri Poetry: उसे देख कर कब रहा जाए है

उर्दू अदब
                
                                                         
                            तड़प कर जिगर मुँह को आ जाए है
                                                                 
                            
उसे देख कर कब रहा जाए है

किसू ने न अब तक बताया हमें
ग़म-ए-हिज्र में क्या किया जाए है

मोहब्बत में ऐ मौत ऐ ज़िंदगी
जिया जाए है या मरा जाए है

रुमूज़-ए-बहाराँ जो पूछो हो तुम
गुल अपने लहू में नहा जाए है

मुझे पा के तन्हा मिरी बेकसी
सर-ए-शाम बिस्तर लगा जाए है

मुझे गुमरही का नहीं कोई ख़ौफ़
तिरे घर को हर रास्ता जाए है

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14 घंटे पहले

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