तड़प कर जिगर मुँह को आ जाए है
उसे देख कर कब रहा जाए है
किसू ने न अब तक बताया हमें
ग़म-ए-हिज्र में क्या किया जाए है
मोहब्बत में ऐ मौत ऐ ज़िंदगी
जिया जाए है या मरा जाए है
रुमूज़-ए-बहाराँ जो पूछो हो तुम
गुल अपने लहू में नहा जाए है
मुझे पा के तन्हा मिरी बेकसी
सर-ए-शाम बिस्तर लगा जाए है
मुझे गुमरही का नहीं कोई ख़ौफ़
तिरे घर को हर रास्ता जाए है
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