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Urdu Poetry: घेर लेती हैं मुझे फिर से अँधेरी रातें

उर्दू अदब
                
                                                         
                            सुरमई धूप में दिन सा नहीं होने पाता
                                                                 
                            
धुँद वो है के उजाला नहीं होने पाता

देने लगता है कोई ज़हन के दर पर दस्तक
नींद में भी तो मैं तनहा नहीं होने पाता

घेर लेती हैं मुझे फिर से अँधेरी रातें
मेरी दुनिया में सवेरा नहीं होने पाता

छीन लेते हैं उसे भी तो अयादत वाले
दुख का इक पल भी तो मेरा नहीं होने पाता

सख़्त-जानी मेरी क्या चीज़ है हैरत हैरत
चोट खाता हूँ शिकस्ता नहीं होने पाता

लाख चाहा है मगर ये दिल-ए-वहशी दुनिया
तेरे हाथों का खिलौना नहीं होने पाता

~  'नश्तर' ख़ानक़ाही

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14 घंटे पहले

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