न इंतिज़ार करो इनका ऐ अज़ा-दारो
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते
-साबिर ज़फ़र
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा
- जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’
मर के पाया शहीद का रुत्बा
मेरी इस ज़िंदगी की उम्र दराज़
-जोश मलीहाबादी
ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला
देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया
- जाफ़र ताहिर
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