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निदा फ़ाज़ली के वो शेर जो हर समय में मौज़ू रहेंगे...

निदा फ़ाज़ली के वो शेर जो हर समय में मौज़ू रहते हैं
                
                                                         
                            निदा फ़ाज़ली ने उर्दू साहित्य को नज्मों का गुलदस्ता दिया है। प्रेम के साथ सामाजिक परिस्थितियों और देश, काल, वातावरण का उन्होंने अपनी नज्मों में एक गहन विश्लेषण के साथ उल्लेख किया है। भारत में सामाजिक परिवर्तनों की एक लम्बी श्रृंखला है और राजनैतिक परिवर्तनों का तो कहना ही क्या? यह दौर ऐसा है कि भारत में तरह-तरह की चर्चाएं आम हो रहीं हैं। अलगाववादी ताकतें और मौक़ापरस्ती पूरे शबाब पर हैं। ऐसे कठिन समय में निदा फ़ाज़ली की शायरी रास्ता दिखाती है। पेश निदा फ़ाज़ली के वो शेर जो हर समय में मौज़ू रहते हैं...
                                                                 
                            


अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए 
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी 

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं 
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं 

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे 
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा 

एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा 
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला 
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6 वर्ष पहले

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