वतन में पैदा हुए हर शख़्स के मन में उसके लिए एक जज़्बा और गर्व का भाव होता है। प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि वह कहीं न कहीं अपने देश के लिए कुछ कर सके, उसके लिए काम आ सके। इसी पर शायरों ने भी कुछ अल्फ़ाज़ यूं कहे हैं।
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
- लाल चन्द फ़लक
बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ तेरी ये उम्र तो आराम की थी
- परवीन शाकिर
इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान
अंधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
- जावेद अख़्तर
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आंखें
- अज्ञात
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