अपने विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम मातृभाषा है। इसी के जरिये हम अपनी बात को सहजता और सुगमता से दूसरों तक पहुंचा पाते हैं। हिंदी की लोकप्रियता और पाठकों से उसके दिली रिश्तों को देखते हुए उसके प्रचार-प्रसार के लिए अमर उजाला ने ‘हिंदी हैं हम’ अभियान की शुरुआत की है।
इस अभियान के अंतर्गत हम प्रतिदिन हिंदी के मूर्धन्य कवियों से आपका परिचय करवाते हैं। चूंकि साहित्य किसी भी भाषा का सबसे सटीक दस्तावेज है जो सदियों को अपने भीतर समेटे हुए है इसलिए यह परिचय न सिर्फ़ एक कवि बल्कि भाषा की निकटता को भी सुनिश्चित करेगा, ऐसा विश्वास है।
इसके साथ ही अपनी भाषा के शब्दकोश को विस्तार देना स्वयं को समृद्ध करने जैसा है। इसके अंतर्गत आप हमारे द्वारा जानते हैं - आज का शब्द। हिंदी भाषा के एक शब्द से प्रतिदिन आपका परिचय और कवियों ने किस प्रकार उस शब्द का प्रयोग किया है, यह इसमें सम्मिलित है।
आप हमारे साथ इस मुहिम का हिस्सा बनें और भाषा की गरिमा का अनुभव करें। आज हम बात करेंगे हिंदी की उस कवयित्री के बारे में जो असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला भी थीं
ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को याद करते हुए अनेकों बार ये पंक्तियां पढ़ी गयीं। कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की लिखी कविता में देश की उस वीरांगना के लिए ओज था, करूण था, स्मृति थी और श्रद्धा भी। इसी एक कविता से उन्हें हिंदी कविता में प्रसिद्धि मिली और वह साहित्य में अमर हो गयीं।
उनका लिखा यह काव्य सिर्फ़ कागज़ी नहीं था, जिस जज़्बे को उन्होंने कागज़ पर उतारा उसे जिया भी। इसका प्रमाण है कि सुभद्रा कुमारी चौहान महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थीं और कई दफ़ा जेल भी गयीं।
सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के पास निहालपुर में हुआ था। पिता रामनाथ सिंह ज़मींदार थे लेकिन पढ़ाई को लेकर जागरूक भी थे। अपनी प्रतिभा को दिखाते हुए सुभद्रा ने भी बचपन से ही कविता कहना शुरू कर दिया था। पहली कविता 9 साल की उम्र में छपी जिसे उन्होंने एक नीम के पेड़ पर ही लिख दिया था।
वह न सिर्फ़ कुछ ही देर में कविता लिख देती थीं बल्कि पढ़ाई में भी अव्वल थीं। ज़ाहिर था कि जितनी पसंदीदा वह अपनी अध्यापिकाओं की हो गयीं, उतनी ही सहपाठियों की भी। बचपन में कविता लिखने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो फिर ताउम्र रहा।
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