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निराला के जीवन में अभाव ही अभाव रहे, पर उनकी आत्मा में वसंत की खुशबू रची-बसी रही

Suryakant tripathi nirala love for Basant
                
                                                         
                            

वसंत पंचमी के साथ महाकवि निराला की याद वैसे ही जुड़ी हुई है, जैसे वे दोनों दो शरीर एक आत्मा हों। निराला ने ‘हिंदी के सुमनों’ को संबोधित करते हुए जो कविता लिखी है, उसमें अपने को ‘वसंत दूत’ ही कहा है। एक जमाने में वसंत पर मौसमी कविताएं लिखना आम था, पर इस विषय पर सबसे श्रेष्ठ गीत निराला ने ही लिखे हैं। उनके जीवन में अभाव ही अभाव रहे, पर उनकी आत्मा में वसंत की खुशबू रची-बसी रही। इसीलिए हिंदी जगत उन्हें ‘महाप्राण’ मानता है।

जिसके पास कोई रस नहीं होता, उसके पास अभाव रस होता है। हिंदी लेखकों में अभाव रस की लंबी परंपरा रही है। हिंदी के सबसे बड़े कवि तुलसीदास के जीवन में अभाव ही अभाव था। निराला भी जीवन भर अभाव रस से घिरे रहे। बाद में यह परंपरा मुक्तिबोध में प्रकट हुई। नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह ने भी शिद्दत से जाना कि अभाव क्या होता है। भाव कभी-कभी आता है। आता है, तो जाता भी है। अभाव रस शाश्वत है। कहते हैं, हम सब का सिरजनहार भी अकेलेपन से ऊब गया था, तब उसने अपने कौतुक के लिए यह सृष्टि बनाई। तब से वह अपनी सृष्टि में रमा हुआ है।

फिर भी क्या वह अभाव रस से मुक्त हो गया होगा? मुझे शक है। शक इसलिए है कि उसकी बनाई सृष्टि में प्रत्येक प्राणी अभाव रस से आप्लावित दिखाई देता है। जिसके पास सब कुछ है, वह भी प्रेम की खोज में लगा रहता है। अतः ईश्वर की खोज भी अधूरी ही होगी।

निराला का जन्म रविवार को हुआ था। इसी से उनका नाम सूर्यकांत पड़ा। लेकिन सूर्य के पास अपनी धधकन के अलावा और क्या है? हम सूर्य की पूजा करते हैं, क्योंकि वह जीवनदाता है। लेकिन सूर्य किसकी पूजा करे? कवियों के कवि निराला सूर्य की तरह ही जीवन भर धधकते रहे। बचपन में मां चली गईं, जवानी आते-आते पिता न रहे। धर्मपत्नी को प्लेग खा गया। बेटी का विवाह नहीं हो सका और अकालमृत्यु हुई। जीवन भर कभी इतने साधन नहीं हुए कि कल की चिंता न करनी पड़े। किसी प्रतिभाशाली और संवेदनशील लेखक के साथ इससे ज्यादा ट्रेजेडी और क्या हो सकती है? फिर भी, निराला प्रकृति और संस्कृति दोनों के अभिशापों को झेलते हुए अपनी सृजन यात्रा पर चलते रहे। यह आत्मिक शक्ति ही निराला जैसे लेखकों की विलक्षणता है। निराला ने ठीक ही कहा है, मैं बाहर से खाली कर दिया गया हूं, पर भीतर से भर दिया गया हूं। यह कोरा अनुप्रास नहीं था - निराला का यथार्थ था।

वेदना सिर्फ उन्हें ही तोड़ पाती है, जिनके पास व्यक्तित्व नहीं होता। निराला की जिस कमाई का हम अभिनंदन करते हैं, वह है, उनका व्यक्तित्व। अपने समय के लेखकों में सूर्यकांत ‘निराला’ में ही व्यक्तित्व दिखाई देता है। वह अक्खड़ थे, स्वाभिमानी थे और परदुखकातर भी थे। उन्हें मर जाना, या जीते जी मर जाना कुबूल था, पर किसी के सामने रिरियाना नहीं। ताप का यह तनाव उनकी रचनाओं में भी प्रगट होता है। हिंदी में वीर रस की रचनाएं उपलब्ध हैं, पर जिसे हम पॉजिटिव अर्थ में मर्दाना या पैरुषेय कह सकते हैं, वह निराला में जितना दिखाई देता है, उतना कहीं और नहीं।

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एक वर्ष पहले

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