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आने वाला कल

                
                                                         
                            आज जो आप कर रहे हैं, कल देखिएगा!
                                                                 
                            
अपने रोपे हुए का फल देखिएगा!
धीरे धीरे ही मगर चल रहा है रोज जो,
अंत में होगा वही सफल देखिएगा!
टिमटिमाते हुए दीपक जो जल रहा है,
वो दूर किसी चौखट पर!
करेगा दूर अंधेरा भी वही सकल देखिएगा !
माना कि अभी वो बच्चे हैं, नादान हैं,
मगर आप ही को देखकर , आपसे आपसे ही सीख रहे हैं!
करेंगे आप ही का नकल देखिएगा !
फिर से खिलेगा गुलाब  प्यार और मुहब्बत का,
ढह जाएगा नफरत का महल देखिएगा!
मिलेंगे जब दिल से दिल, इंसान से इंसान,
आंखें खुद ब खुद हो जाएंगी सजल देखिएगा!
दुनिया जाएगी एक दिन बदल, देखिएगा!
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
26 मिनट पहले

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