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सुरमयी अँखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे...एक मीठी लोरी

surmayi ankhiyon mein nanha munna ek sapna de ja re sadma film
                
                                                         
                            
सन् 1983 में आयी फ़िल्म 'सदमा' का यह गाना ऐसा लगता है कि दिन-भर की दौड़ धूप के बाद मस्तिष्क में लगी गिरहें धीरे धीरे ख़ुल कर सुकून दे रही हैं। इल्लयराजा के निर्देशन पर लयबद्ध हुआ संगीत मन के आखिरी कोने तक गहरा एहसास छोड़ता है, इतना गहरा कि गाने के बंद हो जाने के बाद भी आप अपनी कर्णेन्द्रियों को उसी के आकर्षण में बंधा हुआ महसूस करेंगे और ऐसे शीतल संगीत में जब ग़ुलज़ार अपनी कलम का जादू डाल दें तो ऐसा नग़मा निस्संदेह आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। ज़ाहिर है कि मैं भी इस गाने के मोह से नहीं बच पायी, येसुदास की सुरीली आवाज़ में यह नग़मा कर्णप्रिय तो लगता ही है साथ ही उनके गले के ठहराव को देखकर लगता है जैसे समंदर की शांत लहरें ख़ुद इसे गुनगुना रही हैं। यह गाना मुझे बेहद ही अज़ीज़ है, इसे सुनकर ज़िंदग़ी और भी करीब महसूस होती है।

यह गाना एक लोरी है जिसे कमल हसन और श्रीदेवी पर फ़िल्माया गया है। इस फ़िल्म में श्रीदेवी की याद्दाश्त चली जाती है और वह बच्चों की तरह व्यवहार करने लगती हैं और कमल हसन उनका ध्यान रखते हैं। इस गाने में वह उन्हें यह लोरी सुनाकर सुलाने की कोशिश कर रहे हैं। 'लोरी' जिसे सुनकर बच्चे सो जाते हैं और 'जिसे अक्सर माएं बच्चों के सर में हाथ फैरते हुए सुनाती हैं ताकि उन्हें जल्दी नींद आ सके', किसी भी गाने की वह विधा है जिसमें वात्सल्य का एक अद्भुत संपुट होता है। इस गाने में भी यह भाव सम्पूर्णता से नज़र आते हैं। 
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सुरमई अँखियों में...

7 वर्ष पहले

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