हिंदी हैं हम शब्द-शृंखला में आज का शब्द है - विभु जिसका अर्थ है - 1. ईश्वर 2. पुराण 3. कुबेर 4. आकाश। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी कविता में इस शब्द का प्रयोग किया है।
मद-भरे ये नलिन-नयनमलीन हैं;
अल्प-जल में या विकल लघु मीन हैं?
या प्रतीक्षा में किसी की शर्वरी;
बीत जाने पर हुए ये दीन है?
या पथिक से लोल-लोचन! कह रहे
हम तपस्वी हैं, सभी दुख सह रहे।
गिन रहे दिन ग्रीष्म-वर्षा-शीत के;
काल-ताल- तरंग में हम बह रहे।
मौन हैं, पर पतन में-उत्थान में ,
वेणु-वर-वादन-निरत-विभु गान में
है छिपा जो मर्म उसका, समझते;
किन्तु फिर भी हैं उसी के ध्यान में।
आह! कितने विकल-जन-मन मिल चुके;
हिल चुके, कितने हृदय हैं खिल चुके।
तप चुके वे प्रिय-व्यथा की आंच में;
दुःख उन अनुरागियों के झिल चुके।
क्यों हमारे ही लिये वे मौन हैं?
पथिक, वे कोमल कुसुम हैं-कौन हैं?
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