संगमरमर बताता है हमें स्वर्णाक्षरों में:
यहाँ रहा महान आदमी, काम किया और मरा
ये हैं स्वर्णिम रास्ते जिन पर उसने ख़ुद सोना लगाया
यह है बेंच- छुओ नहीं- उसने ख़ुद जड़ा है पत्थर इसमें
और यहाँ-सँभलकर-हम घुस रहे हैं घर में
वह संसार में ऐसे समय आया, जब आने का उपयुक्त समय था
जो भी बीतना था बीता इसी घर में
घरेलू परियोजनाओं में नहीं
फर्नीचर से भरे लेकिन ख़ाली क्वार्टरों में नहीं
अनजान पड़ोसियों के बीच
पन्द्रहवें माले पर नहीं
जहाँ सर्वे करने वाले विद्यार्थी कभी-कभार पहुँचते हैं
इस कमरे में उसने सोचा
इसमें वह सोता था
और यहाँ उसने मेहमानों की मेहमानबाज़ी की
पोर्ट्रेट, सितार, काल की मार खाया कारपेट
पोर्च में शीशें में जड़ा हुआ
यहाँ उसने अपने दर्जी और मोची से बहस की
जो उसके कोट और बूट बनाते थे
यह वैसा ही नहीं है जैसे कि बक्से में बन्द फोटोग्राफ़ है
प्लास्टिक के कपों में सूखे हुए बालप्वाइंट पेन हैं
कपड़े की दुकान से ख़रीदे गए कपड़े
कपड़े की दुकान के डिब्बों में बन्द हैं
यह एक खिड़की जो बादलों की ओर देखती है
आने-जाने वालों की ओर नहीं
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इस कमरे में उसने सोचा...
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