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कविता भट्ट : प्रेम-अगन, अनोखे आलिंगन

कविता भट्ट : प्रेम-अगन, अनोखे आलिंगन
                
                                                         
                            

जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।

निर्मल बहे
पहाड़ी झरने -सा
प्रेम तुम्हारा।

नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे। आगे पढ़ें

6 वर्ष पहले

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😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
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