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अज्ञेय: झर गये तुम्हारे पात मेरी आशा नहीं झरी

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झर गये तुम्हारे पात
मेरी आशा नहीं झरी।
जर गए तुम्हारे दिए अंग
मेरी ही पीड़ा नहीं जरी।

मर गयी तुम्हारी सिरजी
जीवन-रसना-शक्ति-जिजीविषा मेरी नहीं मरी।
टर गये मेरे उद्यम, साहस-कर्म,
तुम्हारी करुणा नहीं टरी!
 

10 घंटे पहले

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