मेरे चेहरे से अक्सर
झाँक जाती है मेरी माँ
लोग कहते हैंं
कि उन्होंने मुझमें मेरी माँ को देखा
आईना देखती हूँ
तो अपने ललाट में दिखाई देता है
माँ का ललाट
कभी भाई के चेहरे से झाँकती होती है माँ
तो कभी बेटी की बोली में
सुनाई देती है माँ की आवाज़
तो कभी बक्षन की काया में
छाया बनकर चलती होती है माँ
शरीर की सीमाओं को पार करके भी
अदेह होकर भी
रह न सकी वह हमें छोड़कर
कि वह लौट रही है हम सबके अस्तित्व में
हममें प्रकट होती है माँ बार-बार
माँ चलती रहती है हमारे साथ उम्र-भर
अपनी रचनाके मोह में बँधी
हमीं में समाकर
हमारे ही साथ निरंतर
आखिर बिना माँओं के
रह भी कैसे पायेगी यह पृथ्वी
सप्राण और सजीव?
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