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भवानीप्रसाद मिश्र: जीवन की ऊष्मा की याद भी बनी है जब तक

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जीवन की ऊष्मा की
याद भी बनी है जब तक
तब तक मैं
घुटने में सिर डालकर
नहीं बैठूँगा सिकुड़ा–सिकुड़ा

भाई मरण
तुम आ सकते हो
चार चरण
छलाँगें भरते मेरे कमरे में

मैं ताकूँगा नहीं
तुम्हारी तरफ़ डरते–डरते
आँकूँगा
जीवन की नयी कोई छाँव
तुम्हारी छाया में! 

 

16 घंटे पहले

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