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रहमान मुसव्विर की ग़ज़ल: रात भर ख़्वाब जो सजाता हूँ

उर्दू अदब
                
                                                         
                            हाल-ए-दिल इस तरह छुपाता हूँ
                                                                 
                            
जब भी मिलता हूँ मुस्कुराता हूँ

रात भर ख़्वाब जो सजाता हूँ
दिन निकलता है भूल जाता हूँ

मेरे कमरे में सिर्फ़ काग़ज़ है
मैं चराग़ों से ख़ौफ़ खाता हूँ

आज-कल वो भी कुछ नहीं कहता
मैं भी ख़ामोश लौट आता हूँ

ऊँचे लोगों में बैठ कर मैं भी
अपनी औक़ात भूल जाता हूँ

ज्वार-भाटा मिरी रगों में है
मैं समुंदर समेट लाता हूँ

किस की बाहोँ में टूटना था मुझे
किस की बाँहों में छटपटाता हूँ

चाँदनी झूलती है शाने पर
चाँद को गोद में खिलाता हूँ

रात कटती है आसमानों पर
दिन को मैं बकरियाँ चराता हूँ

अप्सराएँ मुझे बुलाती हैं
देवताओं को मैं बुलाता हूँ

खेत तो पट गए हैं लाशों से
रेत में सब्ज़ियाँ उगाता हूँ

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17 घंटे पहले

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