एक बार फिर आऊँगा
आऊँगा और फिर से आग के
गोल-गोल घेरे से होकर निकलूँगा
और अबकी बार तो
आग के दरिया पर
तैर कर दिखाऊँगाएक बार फिर काजल की
कोठरी में जाऊँगा और लीकों ही लीकों वाले
चेहरे में
और भी ख़ूबसूरत
लगकर दिखाऊँगाभागती-दौड़ती इस उम्र को
एक क्षण रोककर जो कहना चाहता था
तुम्हारे कान में अबकी बार उसे
कहकर ही जाऊँगापुनर्जन्म के बारे में कुछ भी जानता नहीं
लेकिन कविता में लौटकर आने का
भरोसा न होता तो अब तक
कब का डूब गया होता।
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