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गुलज़ार: हम ने तो रात को दाँतों से पकड़ कर रक्खा

gulzar famous ghazal tujh ko dekha hai jo dariya ne idhar aate huye
                
                                                         
                            


तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए
कुछ भँवर डूब गए पानी में चकराते हुए

हम ने तो रात को दाँतों से पकड़ कर रक्खा
छीना-झपटी में उफ़ुक़ खुलता गया जाते हुए

मैं न हूँगा तो ख़िज़ाँ कैसे कटेगी तेरी
शोख़ पत्ते ने कहा शाख़ से मुरझाते हुए

हसरतें अपनी बिलक्तीं न यतीमों की तरह
हम को आवाज़ ही दे लेते ज़रा जाते हुए

सी लिए होंट वो पाकीज़ा निगाहें सुन कर

एक महीने पहले

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