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Hindi Diwas 2025: पूरा देश सुनो गाता है, फिर हिंदी का गाना

कविता
                
                                                         
                            पूरा देश सुनो गाता है 
                                                                 
                            
फिर हिंदी का गाना।
हिंदी सिर धुन कर पछताती
बिखरा ताना-बाना।

हिंदी को गंगा कहता है
गंगा को वह माई
इस जबान में मगर
नहीं होती उसकी सुनवाई
'हम हैं हिंदी' 'हिंदी हैं हम'
रटता राग पुराना।

पुरखों की संपत्ति बिक रही
देखो चिंदी-चिंदी
कहां रहेगी कहो बिचारी
तब सरकारी हिंदी
हिंदी किस माथे की बिंदी
किसे भला समझाना!

हिंदी का सेवक भूखा है
फिर भी बाज न आता
पिछलगुआ बनता सत्ता का
रह रह कर पछताता
ज्ञान उगलता गूगल निस्सृत
भेष बदलता नाना।

हिंदी कमजोरों की भाषा
संगी न ही संघाती
वह शादी में शामिल बाजा
बना हुआ बाराती
हिंदी वाला इसी देश में
लगता है  बेगाना।

बनी राजभाषा है लेकिन
रहती सदा ओसारे
हिंदी के प्रयोग पर बैठा
कौन कुंडली मारे?
मैकाले के प्रेतों का है
हिंदुस्तान ठिकाना।

ओम निश्चल

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19 घंटे पहले

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