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ज़ेब ग़ौरी: ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे

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ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे
दर्द के सब क़िस्से याद-ए-माज़ी हो जाएँगे

साँसें लेती तस्वीरों को चुप लग जाएगी
सारे नक़्श करिश्मों से आरी हो जाएँगे

आँखों से मस्ती न लबों से अमृत टपकेगा
शीशा-ओ-जाम शराबों से ख़ाली हो जाएँगे

खुली छतों से चाँदनी रातें कतरा जाएँगी
कुछ हम भी तन्हाई के आदी हो जाएँगे

कूचा-ए-जाँ पर गहरे बादल छाए रहेंगे 'ज़ेब'
उस की खिड़की के पर्दे भारी हो जाएँगे 
 

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एक दिन पहले

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