न उन्होंने कुण्डी खड़काई न दरवाज़े पर लगी घण्टी बजाई
अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग
उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे
मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया
कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं
हाँ....पहचानोगे भी कैसे
बहुत बरस हो गए मिले हुए
तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी उम्र ने काफ़ी बदल दिया है
लेकिन हमें देखो हम तो आज भी बिल्कुल वैसे ही हैं
हमारे रंग ज़़रूर कुछ फीके पड़ गए हैं
लेकिन क्या तुम सचमुच इन रंगों को नहीं पहचान सकते
क्या तुम अपने बचपन के सारे रंगों को भूल चुके हो
भूल चुके हो अपने हाथों से खींची गई सारी रेखाओं को
तुम्हारी स्मृति में क्या हम कहीं नहीं हैं ?
याद करो, यह उन दिनों की बात है जब तुम स्कूल में पढ़ते थे
आठवीं क्लास में तुमने अपनी ड्राइंग कापी में एक तस्वीर बनाई थी
और उसमें तिरछी और तीखी बौछारों वाली बारिश थी
जिसमें कुछ लोग भीगते हुए भाग रहे थे
वह बारिश अचानक ही आ गई थी शायद तुम्हारे चित्र में
चित्र पूरा करने की हड़बड़ी में तुम सिर छिपाने की जगहें बनाना भूल गए थे
हम तब से ही भीग रहे थे और तुम्हारा पता तलाश कर रहे थे
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