मैं अपनी प्रतिज्ञाओं को करने से पहले ही तोड़ देता हूँ,
मैं चीज़ों को पकड़ने के पहले ही छोड़ देता हूँ,
मेरे रूबरू न कोई प्रतिज्ञा है, न कोई चीज़,
अगर सवाल आदमी का न होता,
तो मैं यही सर पटककर जान दे देता।
यही तो सवाल है
जिसे मैं टाँकना चाहता हूँ,
सलमों-सितारों में
जिसे मैं उकेरना चाहता हूँ,
अपनी कविताओं के बीच में।
कि चाहे जो भी हो जाए,
जुल्म की आख़िरी हदों तक
उनकी आख़िरी हदों तक
मिटाया ही जाता रहेगा।
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