आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

Hindi Poetry: उड़ना बार-बार और हर बार उसी जहाज पर लौट आना

कविता
                
                                                         
                            उड़ना
                                                                 
                            
बार-बार
और हर बार उसी जहाज पर लौट आना
अब नहीं होगा।

दूर ज़मीन दिखाई पड़ने लगी है
जहाज
बस, किनारा छूने ही वाला है
लेकिन
मैं फिर भी बेचैन हूँ

अब तक तो सब-कुछ तय था।

उड़ान की दिशाएँ भी।
उड़ान की नियति भी कि अपार
जलराशि के ऊपर थोड़ी देर पंख
फड़फड़ा लेना है
और फिर दुबारा लौटकर फिर वहीं आ जाना है।

अब
सब-कुछ मेरी मरज़ी पर निर्भर होगा

चाहूँ तो पहाड़ों की तरफ़ जा सकूंगा
जंगल की तरफ़ भी। या फिर से
आ सकूंगा किनारे पर खड़े जहाज की तरफ़।

भावी आज़ादी पंखों में फुरहरी
जगा रही है। ख़ुद को
बदलते पा रहा हूँ। और यह सब
ज़मीन के चलते
जो दिखाई पड़ने लगी है

पक्षी हूँ। पर
आसमान से ज़्यादा
ज़मीन से जुड़ा हूँ।
आँखों में अब ज़मीन ही ज़मीन है...।

और वे पेड़, जिन पर अगली रातों में
बसेरा करूंगा
वे पहाड़, जिन्हें पार करूंगा।
वे जंगल, जहाँ ज़िन्दगी बीतेगी
और ये सब एक निषेध है

कि पक्षी को
समुद्री-यात्रा पर जा रहे जहाज की ओर
मुँह नहीं करना चाहिए।

~ वेणु गोपाल

हमारे यूट्यूब चैनल को Subscribe करें।   

21 घंटे पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर