सिनेमा और साहित्य दोनों ही समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाले माध्यम हैं। दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व तो महत्वपूर्ण है ही लेकिन फिर भी जैसे कई किताबें सिनेमा व उसके विवेचन पर लिखी गयीं उसी प्रकार सिनेमा में भी कविताओं, ग़जलों के ज़िक्र हुए। कई बार कविताओं के ज़रिए ही दृश्यों में एहसासों का थ्री डी अफ़ेप्ट डाला गया। पेश हैं वह तमाम फ़िल्में जिनमें कविताओं को पढ़ा गया
फ़िल्म - कभी-कभी
शायर - साहिर लुधियानवी
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ज़िंदगी तिरी जुल्फों कि नर्म छांव में गुज़रने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।
यह रंज-ओ-ग़म कि सियाही जो दिल पे छाई है
तेरी नज़र कि शुआओं में खो भी सकती थी।
मगर यह हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं, तेरा ग़म तेरी जुस्तजू भी नहीं।
गुज़र रही हैं कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इसे किसी के सहारे कि आरज़ू भी नहीं
न कोई राह, न मंजिल, न रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों में ज़िंदगी मेरी
इन्हीं अंधेरों में रह जाऊंगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हम-नफस, मगर यूं ही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
फ़िल्म - ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा
शायर - जावेद अख़्तर
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समां देखे ये निगाहें
जो अपनी आंखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम
फ़िल्म - अग्निपथ
कवि - डॉ. हरिवंश राय बच्चन
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
फ़िल्म - पिंक
कवि - तनवीर गाज़ी
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है,
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इनको वस्त्र तू
ये बेड़ियां पिघाल के
बना ले इनको शस्त्र तू
बना ले इनको शस्त्र तू
तू खुद की खोज में निकल
फ़िल्म - जब तक है जान
कवि - गुलज़ार
तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ
तेरे होठों की बेपरवाह गुस्ताखियाँ
तेरी जुल्फों की लहराती अंगडाईयां
नहीं भूलूंगा मैं
जब तक है जान
जब तक है जान
तेरा हाथ से हाथ छोड़ना तेरा सायों का रुख मोड़ना
तेरा पलट के फिर ना देखना
नहीं माफ़ करूँगा मैं
जब तक है जान
जब तक है जान
बारिशों में बेधड़क तेरे नाचने से
बात-बात में बेवजह तेरे रूठने से
छोटी -छोटी बचकानी बदमाशियों से
मोहब्बत करूँगा मैं
जब तक है जान
जब तक है जान
तेरे झूठे कसमों वादों से
तेरे जलते सुलगते ख्वाबों से
तेरी बेरहम दुवाओं से
नफ़रत करूँगा मैं
जब तक है जान
जब तक है जान
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