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वे कविताएं जो आपने फ़िल्मों में सुनी होंगी

Hindi kavita in bollywood films
                
                                                         
                            

सिनेमा और साहित्य दोनों ही समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाले माध्यम हैं। दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व तो महत्वपूर्ण है ही लेकिन फिर भी जैसे कई किताबें सिनेमा व उसके विवेचन पर लिखी गयीं उसी प्रकार सिनेमा में भी कविताओं, ग़जलों के ज़िक्र हुए। कई बार कविताओं के ज़रिए ही दृश्यों में एहसासों का थ्री डी अफ़ेप्ट डाला गया। पेश हैं वह तमाम फ़िल्में जिनमें कविताओं को पढ़ा गया

फ़िल्म - कभी-कभी
शायर - साहिर लुधियानवी 

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ज़िंदगी तिरी जुल्फों कि नर्म छांव में गुज़रने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।

यह रंज-ओ-ग़म कि सियाही जो दिल पे छाई है
तेरी नज़र कि शुआओं में खो भी सकती थी।

मगर यह हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं, तेरा ग़म तेरी जुस्तजू भी नहीं।

गुज़र रही हैं कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इसे किसी के सहारे कि आरज़ू भी नहीं

न कोई राह, न मंजिल, न रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों में ज़िंदगी मेरी

इन्हीं अंधेरों में रह जाऊंगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हम-नफस, मगर यूं ही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

 

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फ़िल्म - ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा

5 वर्ष पहले

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