एक बोसे के तलबगार हैं हम
और मांगें तो गुनहगार हैं हम
- अज्ञात
ध्यान के रस में डूबे लब
बोसा बोसा चेहरे हैं
- मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
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