जनता की भाषा में जनता के लिए गीत लिखने वाले कवि और गीतकार इन्दीवर मजरूह और नीरज के साथ एक ही पंक्ति में खड़े नज़र आते हैं। इन्दीवर ने अंग्रेज़ों को ललकारते हुए गीत लिखे जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्य से देश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें स्वाधीनता सेनानी का दर्जा मिलने में दो दशक लग गए। इसके अलावा फ़िल्मों में उन्होंने प्रेम से लेकर विरह तक सभी विधा के गीत लिखे।
इन्दीवर का असली नाम श्यामलाल बाबू राय था। उनका जन्म 15 अगस्त 1924 को उत्तर प्रदेश के झांसी से बीस किमी दूर बरुवा कस्बे में हुआ था। ग़रीब परिवार में पैदा हुए इन्दीवर के माता-पिता बचपन में ही चल बसे थे। बहन-बहनोई इन्हें अपने साथ ले गए लेकिन वहां इनका मन नहीं लगा और वापस अपने बरुवा आ गए।
खाने पीने की किल्लतों और प्रबन्धों के बीच इनकी घनिष्ठता एक फ़क़ीर से हो गयी। पेड़ के नीचे धूनी रमाने वाला वह बाबा ख़ुद ही लिखता था और गाता भी था। उसके गीत सुनकर लोग पैसे दान कर जाते। उन पैसों को वह स्वयं कभी हाथ नहीं लगाता था। इन्दीवर उन पैसों से बाबा के लिए सारे प्रबन्ध करते और खाना भी बनाते। वहीं से उन्हें भी गीत लिखने का शौक़ हुआ।
श्याम लाल बाबू राय अब श्यामलाल आज़ाद के नाम से लिखने लगे। किसी मसीहा या गॉडफ़ादर की तरह उनके जीवन में रामसेवक रिछारिया आए। उन्होंने न सिर्फ़ उनकी कविताएं संपादित की बल्कि उन्हें कवि-सम्मेलनों से भी परिचित करवाया। जल्द ही कवि इन्दीवर आसपास के तमाम क्षेत्रों में प्रसिद्ध होने लगे, ठीक-ठाक आमदनी भी होने लगी। इस परिस्थिति में बिना मर्ज़ी के शादी करवायी गयी तो मुंबई भाग गए। जब असफ़लता हाथ लगी तो वापस घर लौट गए। इस बीच गृहस्थी में सब ठीक होना शुरु हुआ।
लेकिन इन्दीवर के भाग्य में मुंबई की सफ़लता लिखी ही थी इसलिए क़िस्मत ने वापस बुलाया तो वह बी और सी ग्रेड फ़िल्मों में लिखने लगे। इसके बाद 1951 में आयी फ़िल्म ‘मल्हार’ के गीतों से उन्होंने सफ़लता की सीढ़ियों को चढ़ना शुरु कर दिया।
इन्दीवर ने एक से बढ़ कर एक गीत सिनेमा को देना शुरु कर दिया। जिसमें अमानुष के गीत ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा’ के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।
संगीतकार आनंद जी और कल्याण जी को याद करते हुए एक इंटरव्यू में इन्दीवर बताते हैं कि - कल्याण जी उन्हें रात को 2 बजे घर छोड़ते थे और 100 रुपए दिया करते थे। जिनमें से वह 90 रुपये की किताब खरीदते थे और 10 रुपये अपने लिए बचाते थे। कल्याण जी ने ही उन्हें फ़िल्म सरस्वती चन्द्र भी दिलवायी जिसका गीत ‘चंचल सा बदन चंचल चितवन’ बहुत मशहूर हुआ था।
इसी फ़िल्म का एक और गीत था ‘छोड़ दे सारी दुनिया तेरे लिए ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए।’ जिसमें कल्याण जी ने कहा कि मुनासिब शब्द को बदला जाए, इसकी जगह हिंदी का कोई शब्द लाया जाए। इस पर इन्दीवर ने कहा कि इसकी जगह उचित, उपयुक्त या ठीक नहीं लगाया जा सकता। बड़ी मुश्किल से कल्याण जी माने और वह गाना रिकॉर्ड हो सका। इसके बाद जब भी वह गाना बजता उसके लिए कल्याण जी इन्दीवर को 100 रुपये देते थे।
फ़िल्म मल्हार में एक गीत था 'बड़े अरमानों से रखा है सनम तेरी कसम, प्यार की दुनिया में ये पहला क़दम।’ इसी में एक लाइन थी ‘मेरी नैया को किनारे का इंतज़ार नहीं तेरा आँचल हो तो पतवार भी दरकार नहीं।’ इसे इन्दीवर ने पतवार की दरकार लिखा था हिंदी के हिसाब से 'पतवार की दरकार नहीं'। इस पर कल्याण जी ने उन्हें अलग से बुलाया और कहा कि ‘की’ की जगह ‘भी’ कर दिया जाए। इस पर इन्दीवर ने भरत व्यास के एक गीत का उदाहरण दिया कि ‘ज़िंदगी भी एक मोटरकार है, उसको भी एक ड्राइवर की दरकार है।‘ तब कल्याण जी ने बताया कि दरकार का मतलब है ‘चाहिए’ इसलिए यहां ‘भी’ कर देना चाहिए।
इसके बाद इन्दीवर ने उर्दू, फ़ारसी, अरबी पढ़नी शुरु कर दी और वह ज़ुबान को लेकर संजीदा हो गए। इन्दीवर का कहना था कि “कामयाबी के लिए हमें जनता की ज़ुबान तक जाना है। जनता की ज़ुबान मिली जुली हिंदी है और उसमें उर्दू भी है।”
इन्दीवर ने हिंदी को केन्द्र में रखकर ‘कोई जब तुम्हारा ह्दय तोड़ दे’ और ‘चंदन का बदन‘ जैसे गीत लिखे जो बहुत लोकप्रिय भी हुए। इन्दीवर ने 27 फरवरी 1997 को इस दुनिया से विदा ली।
इन्दीवर के कुछ मशहूर गीतों के बोल
होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो
बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो
न उमर की सीमा हो, न जनम का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन
नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो
जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा
सब जीता किये मुझसे, मैं हर दम ही हारा
तुम हार के दिल अपना, मेरी जीत अमर कर दो
आकाश का सूनापन, मेरे तनहा मन में
पायल छनकाती तुम, आ जाओ जीवन में
साँसें देकर अपनी, संगीत अमर कर दो
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है
प्रियतम मेरे तुम भी लिखना, क्या ये तुम्हारे क़ाबिल है
प्यार छिपा है ख़त में इतना, जितने सागर में मोती
चूम ही लेता हाथ तुम्हारा, पास जो मेरे तुम होती
नींद तुम्हें तो आती होगी, क्या देखा तुमने सपना
आँख खुली तो तन्हाई थी, सपना हो न सका अपना
तन्हाई हम दूर करेंगे, ले आओ तुम शहनाई
प्रीत लगा के भूल न जाना, प्रीत तुम्हीं ने सिखलाई
ख़त से जी भरता ही नहीं, अब नैन मिले तो चैन मिले
चाँद हमारी अंगना उतरे, कोई तो ऐसी रैन मिले
मिलना हो तो कैसे मिलें हम, मिलने की सूरत लिख दो
नैन बिछाये बैठे हैं हम, कब आओगे ख़त लिख दो
जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे
जो तुमको हो पसंद, वही बात करेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे
चाहेंगे, निभाएंगे, सराहेंगे आप ही को
आँखों में दम है जब तक, देखेंगे आप ही को
अपनी ज़ुबान से आपके जज़्बात कहेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे
देते न आप साथ तो मर जाते हम कभी के
पूरे हुए हैं आप से, अरमान ज़िंदगी के
हम ज़िंदगी को आपकी सौगात कहेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे
दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है
उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया है
तूफ़ां में हमको छोड़ के साहिल पे आ गये
नाख़ुदा का हमने जिन्हें नाम दिया है
पहले तो होश छीन लिये ज़ुल्म-ओ-सितम से
दीवानगी का फिर हमें इल्ज़ाम दिया है
अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ
ग़ैरों ने आ के फिर भी उसे थाम लिया है
बन के रक़ीब बैठे हैं वो जो हबीब थे
यारों ने ख़ूब फ़र्ज़ को अंजाम दिया है
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एक वर्ष पहले
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