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मौसमी देशभक्ति

                
                                                         
                            मैं सिर्फ दो ही दिन जागती हूँ,
                                                                 
                            
बाकी सब दिन सोई रहती हूँ।

में 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही जगती हूँ,
फिर बाकी साल भर, नींद में खोई रहती हूँ।

मुझे परवाह नहीं रहती,
कि 16 अगस्त या 27 जनवरी को
तिरंगा कहाँ पड़ा है -किसी कोने में,
किसी ज़मीन पर।

मुझे फर्क नहीं पड़ता,
मुझे राष्ट्रगान आता है या नहीं,
या मैं किस मुद्रा में खड़ी हूँ,
जब "जन गण मन" गूंजता है।

लो फिर लौट आई दो दिन की देशभक्ति ।

मुझे फर्क नहीं पड़ता,
समाज में क्या हो रहा है,
कौन अन्याय झेल रहा है -
मैं तो अपने ही काम में व्यस्त रहती हूँ।
हाँ, कभी-कभी बीच में उठ जाती हूँ,
जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है,
या किसी जवान की शहादत पर
दो आँसू गिरा देती हूँ।

लो फिर लौट आई दो दिन की देशभक्ति ।

मुझे फर्क नहीं पड़ता,
मेरा नेता कौन है,
क्या कर रहा है -जब कुछ गलत देखती हूँ, तो दो गलियाँ देकर चुप हो जाती हूँ।

लो फिर लौट आई दो दिन की देशभक्ति,
जो सिर्फ दो दिन जगती है,
और साल के बाकी दिन सोई रहती है।
-अभिषेक रजक 
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एक महीने पहले

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