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जौन एलिया: उन चुनिंदा शायरों में से एक जिनके शेर किसी न किसी मरहले पर सटीक बैठ ही जाते हैं

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पढ़ने वाला स्टेज से कई ग़ज़लें कहता है, किसी शेर पर लोग वाह-वाह करते हैं, किसी पर ताली बजातें हैं और किसी पर उमंग से भर जाते हैं और जब वे उमंग स भरते हैं, उस समय एक तेज़ मिली-जुली ध्वनि से सभागार गूंजते हैं, मुकर्रर की आवाज़ आती है। जिनको ये प्रतिक्रिया मिलती है, वे शायर विरले ही होते हैं, उनके वे शेर दरअसल दिल से निकले और दिल पर लगे होते है। तिस पर जौन एलिया के साथ कमाल ये है कि वे शेर दिल से पढ़े गए भी होते हैं। जौन एलिया के दिल से निकले, पढ़े शेर ज़ाहिर है कि मन तक सफ़र भी करेंगे। इन शेर की उम्र भी लंबी होती है इसलिए जौन एलिया अपने जाने के 22 साल बाद भी सोशल मीडिया पर मशहूर हैं। 

एक बात और जो आकर्षित करती है वो है उनकी उदासी। याद नहीं लेकिन किसी दार्शनिक ने कहा था कि - उदासी में एक अलग प्रकार का आकर्षण होता है, वो खिंचती है अपनी ओर। फिर जौन की उदासी तो उनके कपड़ों से लेकर हुलिए और आवाज़ तक में दिखती ह, कभी वे सर को पीटते हैं, कभी शेर पढ़ते-पढ़ते सिगरेट सुलगा लेते हैं तो कभी लगभग रो ही देते हैं। वे एक हारे हुए आशिक़ थे, शादी हुई थी लेकिन तलाक भी हो गया। क्या उदासी शायरों की अमृत है? कि उससे चिरकालीन शेर निकलते हैं। अक्सर लोग पूछते भी हैं कि क्या शायर होने के लिए दिल का टूटना ज़रूरी है। इन सबका जवाब तो पता नहीं लेकिन इतना तय है कि - दिल टूटने के बाद मन थोड़े समय एक बेचैनी से तो घिरता है और उसके बाद जो शांति ख़ालीपन के साथ जगह बनाती है, उससे बहुत से सोते फूटते हैं। फ़र्क़ इतना भर है कि उन सोतों को व्यक्ति कौन सी दिशा देता है।

जौन शायर थे तो ज़ाहिर है कि उनके भीतर से शेर ही निकले। प्रेम और शादी के अलावा एक विभाजन का दुख भी था जो उनके साथ रहा। वे भारत के अमरोहे में पैदा हुए थे, वहां की नदी, ताल, गांव उनके शेर में भी रहे। वे बान नदी की बात करते थे, उस नदी की जो उनके शहर से होकर गुज़रती थी। अक्सर जौन पाकिस्तान में मुशायरे पढ़ते तो अमरोहे का भी ज़िक्र गाहे-बगाहे कर ही देते हैं। बहरहाल, एक शायर के बारे में जितना लिखा जाए , उतना कम ही है फिर जौन और उनका मयार तो यूं भी बहुत ऊंचा है। फिर शेर की चर्चा तो क्या करें, उन्होंने जो कहा उसे पढ़ा और फिर महसूस ही किया जा सकता है। 

जौन एलिया के कुछ मशहूर शेर 
 

काम की बात मैं ने की ही नहीं
ये मिरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं

मैं जो हूँ 'जौन-एलिया' हूँ जनाब
इस का बेहद लिहाज़ कीजिएगा
 

एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए

दो जहाँ से गुज़र गया फिर भी
मैं रहा ख़ुद को उम्र भर दरपेश 

एक वर्ष पहले

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