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वो जिसे पता ही नहीं

                
                                                         
                            मैं रोज़ उसे देखूँ, यही मेरी आदत बन गई,
                                                                 
                            
और वो समझे भी नहीं मेरी हालत बन गई।

उसकी एक मुस्कान मुझे साँसें दे जाती है,
मेरी पूरी दुनिया बस उसकी आहट बन गई।

मैं उसके पास होकर भी बहुत दूर रहता हूँ,
ये दूरी ही मेरी सबसे सच्ची चाहत बन गई।

वो किसी और से हँस के बात करे तो क्या कहूँ,
उसकी खुशी मेरी सबसे बड़ी इबादत बन गई।

मैं अपनी मोहब्बत ज़ाहिर नहीं कर सका कभी,
ख़ामोशी ही मेरी सबसे हिम्मत बन गई।

वो अगर पूछे "तुम कैसे हो?" तो टूट जाऊँ,
उसका एक छोटा सा लहजा मेरी जन्नत बन गई।

मैं रोज़ खुद को समझा लेता हूँ भूल जा उसे,
और रात होते ही फिर वही ज़रूरत बन गई।

मेरी मोहब्बत का कोई गवाह नहीं है,
बस ये सूनी आँखें ही मेरी अदालत बन गई।

वो मेरी हो या न हो, इसकी अब आरज़ू नहीं,
बस उसे दूर से चाहना मेरी इजाज़त बन गई।

मैं किसी हक़ की बात करता भी कैसे,
जब उसे पता ही नहीं कि वो मेरी मोहब्बत बन गई।
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एक दिन पहले

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