न जाने क्यूँ मिरे हरदम सितारे रूठ जाते हैं
जरा-सा सच कहूँ तो दोस्त सारे रूठ जाते हैं।
कसर रक्खी किसी ने कब मुझे ताने सुनाने में
हँसी उनपे जो आ जाए बिचारे रूठ जाते हैं।
परिंदा हूँ न जाने किस तरफ उड़ कर निकल जाऊँ
कि अब ये पंख भी किस्मत के मारे रूठ जाते हैं।
बहारों में भी मेरे दिल की दुनिया है उदासी क्यूँ
मिरे ही वास्ते क्यूँ सब नज़ारे रूठ जाते हैं।
मुझे पत्थर बना के रख दिया मेरे उसूलो ने
यही होता है सावन से शरारे रूठ जाते हैं।
-पंडित अनिल
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