अपने हाथों से फिसलते हुए देखा मैने
कई रिश्तों को बदलते हुए देखा मैने
वो जो जमकर कभी चट्टान गई थी बन तब
फिर वही बर्फ़ पिघलते हुए देखा मैने
डगमगाया किए कल जो ये, यूं बेफिक्री में
उन्हीं कदमों को संभलते हुए देखा मैने
कल उसी शख्स की सूखी हुई उन आँखों से
फिर से अश्कों को निकलते हुए देखा मैने
दफ्न करके जिन्हें सोए थे कभी हम सुकूं से
हसरतों को क्यों मचलते हुए देखा मैने
-अनमोल
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
कमेंट
कमेंट X