कुछ यूँ बदल गया है मोहब्बत का करना ढंग,
अब दिल नहीं—दरों पर चलते हैं हर रंग–संग।
पैसा चमके तो इश्क़ भी “वाह” कह देता है,
गरीबी देखे तो वही इश्क़ “खता” कह देता है।
आजकल महबूब भी एटीएम-सा चाहिए लोगों को,
जितना निकले उतना प्यार… वरना बदल दो लोगो को।
सच्चा दिल अब सस्ता है, झूठी मुस्कान महंगी,
मोहब्बत के जिस्म पर आज हर नजर सौदा–सी दंग है।
और हाँ— जो दिल सच में तुझे चाहता था…
उसे तेरा ये बाज़ारू फैसला सबसे ज़्यादा जख़्म देता है।
-अनुराधा पवन प्रजापत
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