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ख़्वाब.....

                
                                                         
                            मैंने हाथ उठाए है
                                                                 
                            
तेरी नींदों में तब ख्वाब बन कर आए है
तमाम शब जाग के गुजार दी हमने
तब कही तेरा उठता चेहरा देख पाए है

नींद अक्सर तेरी आंखों से मिन्हा रहती है
तुझे सुलाने की कोशिश की तो जान पाए है
कोई सो गया और हम जाग रहे है
वो याद इस कदर बेहिसाब आए है

आज तुम सो गए तो कितने सोए हुए मंजर जागे है
आज नींद में हम फिर ख्वाबों के पीछे भागे है
हम भीड़ में है या आगे है
हम सोए है या सोए सोए से जागे हैं
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करे
3 वर्ष पहले

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