आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

वस्ल-ओ-तरब

                
                                                         
                            ज़िंदगी के रंज-ओ-ग़म हमको भुलाना चाहिए,
                                                                 
                            
दिल को खोलकर हमेशा मुस्कुराना चाहिए।

गर तुम्हारे दिल में किसी के वास्ते उल्फ़त है,
तुमको बेबाकी से ये उसको जताना चाहिए।

वस्ल-ओ-तरब कितना दिलनशीं-ओ-हसीं है,
आईना-ए-दिल में ये लम्हे बसाना चाहिए।

तुम से ऐ दिलबर हमें कितनी मोहब्बत है , 
जज़्ब-ए-मोहब्बत तुम्हें आज़माना चाहिए।

एक फिर से मुलाकात तुम से हो सके,
हमको फिर से कोई ऐसा ही बहाना चाहिए। 

हुस्न-ओ-जमाल तुम्हारा बहुत बेमिसाल है, 
लाज़मी है इस सबब तुम्हें इतराना चाहिए। 

आंखें तुम्हारी हैं "शमीम" मय के पियाले,
मयकदे को भूल कर इनमें ठिकाना चाहिए।
-देवेन्द्र सचदेवा "शमीम"
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
एक दिन पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर