ज़िंदगी के रंज-ओ-ग़म हमको भुलाना चाहिए,
दिल को खोलकर हमेशा मुस्कुराना चाहिए।
गर तुम्हारे दिल में किसी के वास्ते उल्फ़त है,
तुमको बेबाकी से ये उसको जताना चाहिए।
वस्ल-ओ-तरब कितना दिलनशीं-ओ-हसीं है,
आईना-ए-दिल में ये लम्हे बसाना चाहिए।
तुम से ऐ दिलबर हमें कितनी मोहब्बत है ,
जज़्ब-ए-मोहब्बत तुम्हें आज़माना चाहिए।
एक फिर से मुलाकात तुम से हो सके,
हमको फिर से कोई ऐसा ही बहाना चाहिए।
हुस्न-ओ-जमाल तुम्हारा बहुत बेमिसाल है,
लाज़मी है इस सबब तुम्हें इतराना चाहिए।
आंखें तुम्हारी हैं "शमीम" मय के पियाले,
मयकदे को भूल कर इनमें ठिकाना चाहिए।
-देवेन्द्र सचदेवा "शमीम"
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