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अधूरी मोहब्बत

                
                                                         
                            तेरी आँखों में बस्ती थी एक सारी कायनात,
                                                                 
                            
मैंने उसमें अपनी मृत्यु से पहले की सारी जिंदगी देख ली थी।
फिर तूने पलकें झुका दीं—
और मेरी सारी कायनात
एक पल में अनाथ हो गई।

तेरे हाथों की लकीरें
मैंने अपनी तकदीर नहीं,
अपना कफ़न समझा था।
अब वो लकीरें मेरी हथेली में उभर-उभर कर
रात-रात भर खून की नदियाँ बनाती हैं,
और मैं उन नदियों में डूबने की कोशिश करता हूँ, पर डूबता नहीं,
क्योंकि तूने मुझे सिखाया था तैरना।

तेरी आवाज़ अब मेरे भीतर एक पुराना रिकॉर्ड है
जो टूटा हुआ है,
फिर भी बजता रहता है।
हर खरोंच से निकलता है एक शब्द—
“रहूँगी…”
और उस शब्द के बाद
खामोश का ऐसा सन्नाटा
कि मेरी हड्डियाँ तक चीख उठती हैं।
मैंने तेरे नाम को इतना पुकारा
कि मेरी ज़बान सूज गई,
अब बोलता हूँ तो खून बोलता है।
हर अक्षर एक घाव,
हर विराम एक कब्र।

तेरे जाने के बाद
मेरा शरीर एक खाली मंदिर बन गया,
जिसकी घंटियाँ अब भी बजती हैं
जब हवा तेरे नाम की चलती है।
मैं उस मंदिर के अंदर बैठा हूँ,
पूजा करता हूँ अपनी ही लाश की,
और हर बार माथा टेकता हूँ
तो खून की एक बूंद चढ़ती है।
रात को मैं अपने सीने को चीरता हूँ,
धीरे-धीरे, क्योंकि अफवाह है
कि तेरे नाम का आखिरी टुकड़ा
वहाँ कहीं दबा हुआ है।

खून बहता है,
पर वो टुकड़ा नहीं मिलता।
शायद तू उसे भी साथ ले गई।
मैं अब आईने से डरता हूँ,
क्योंकि उसमें कोई नहीं दिखता,
बस एक सायबान है
जिसके नीचे तेरी परछाईं खड़ी रहती है,
और मैं उस परछाईं को गले लगाने की कोशिश करता हूँ,
पर वो हर बार हाथ फिसल जाता है।

तू जहाँ भी है,
अगर कभी रात को तेरी नींद टूटे
और तेरे सीने में अचानक एक खालीपन दौड़े,
तो समझ लेना
वो मैं हूँ—
अधूरा, बेसहरा,
तेरे भीतर का सबसे पुराना घाव
जो कभी भरने नहीं वाला।

अधूरी मोहब्बत कोई कहानी नहीं,
एक सज़ा है
जो मैं हर साँस पर काट रहा हूँ।
मर नहीं सकता,
क्योंकि मरने के लिए भी
एक पूरा दिल चाहिए।
और मेरा दिल
तेरे पास है।
हमेशा के लिए।
अधूरा।
-दिनेश उनियाल
 
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