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ढूंढता है मन

                
                                                         
                            ढूंढता है मन व्यस्त रहने के कारण
                                                                 
                            
विचारों की अनवरत धारा में बहता
स्वयं से अनंत वार्तालाप करता
कभी किसी सिरे को पकड़ कभी किसी और।
फितरत है मनुष्य की
वह काबू में नहीं रख सकता
निरंतर विचरण करते मन को
और मन ही गढ़ता
अनेक मनगढ़ंत कहानियां
इर्द गिर्द उसमें घूम
मंडराता रहता
जब मन शांत हो, कहानियां ओझल
अचानक न जाने कैसे।
मन ही तय करता
क्या अच्छा क्या बुरा।
स्वयं के हित में अच्छा
अहित में बुरा
स्वयं को भाए, वह श्रेष्ठकर
स्वयं के विपरीत, वह दुष्कर।
मन की प्रकृति है
वानर की, अश्व की
अनायास फुदकता है
बेलगाम दौड़ता है।
मन को मनाओगे, ऐंठेगा
मन को रिझाओगे, झेंपेगा।
मन को समझाओगे, जिद्द करेगा।
मन को मन जान
स्वयं से अलग एहसास करो।
मन को दृष्टा से देखो, शांत रहेगा
मन को मुस्कराकर जानो, सरल रहेगा।
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4 घंटे पहले

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