बड़ी ही एहतियात से सीखे थे रिश्तों के मायने
ज़रा सा झूठ भी कबूल न रिश्तों के सामने।
बड़ी बेअदब दुनिया में हम रिश्ते निभाते रहे
बारूद के ढ़ेर में बैठकर फ़र्ज़ हम निभाते रहे।
चालाकियों की हवाओं में खुशी के फूल खिलाते रहे
बद्दुआओं के शहर में हम अपनी मांग सजाते रहे।
नफ़रत की दरख़्तो में हम चूड़ियां खनकाते रहे
नामुराद दिल में उसके प्रेम का दीपक जलाते रहे।
बेरुखीयों के मंज़र में हम मज़ाक ए खिताब बनते रहे
फ़र्ज़ की सीढ़ी पर चढ़कर हम खुद को जलाते रहे।
बड़ी ही एहतियात से सीखे थे हमनें रिश्तों के मायने
झूठ ए जंजाल में फंस तक़दीर पर अपनी इतराते रहे।
पायल की झनक से हम मोहब्बत बिखराते रहे
वह साजिशों का गिरोह था, जिन्हें हम अपना बताते रहे।
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