धोखा ही धोखा
पूछो मत सच में
सब एक हैं।
आंखों का भ्रम
दृश्य से अलग है
जो है भी नहीं।
बागों में फूल
सूखे पत्तों के संग
भ्रम सूखे का।
हृदय दस्यु
प्रहार निर्मम है
मुक्त होना है।
कब तक है
सत्य झूठ अंतर
सांसे कम है।
तुमसे प्रेम
पाया नवजीवन
भरोसा करो।
आह! झूठ है
तुम नहीं अपने
हृदय दस्यु ।
मैं तुम्हारा ही
पलकें मूंद झांको
दिल में बसा।
नहीं सच ये
प्रेम औषधि है
धोखा तुम्हारा।
मुझे न चाहो
मरती प्रतिपल
प्रेम पीड़ा है।
निष्ठुर तुम
नयन भीग रहे
बादलों संग ।
दंड दो मुझे
स्वीकार्य नहीं क्षमा
अपराधी हूं ।
सजा न दूंगी
प्रियवर हो मेरे
निष्ठुर भले ।
कैसा प्रेम है
तुम और मैं बटे
हम थे एक।
बीती बात है
सजन भूले तुम
रोया था दिल
भूला नहीं था
प्रिया तुम थी साथ
यादों के संग
परदेस में
यादों में भला कौन
तुम्हारे सिवा।
लुभावनी सी
बातें तुम्हारी सदा
नहीं मानूंगी।
मान भी जाओ
रोया दिल सौ बार
रुठो न रानी।
-काव्यांशी श्रीवास्तव
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
कमेंट
कमेंट X