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ग़ज़ल

                
                                                         
                            नाज़ ऐ दिल किसी के इतने उठाता क्यूँ है
                                                                 
                            
उसकी राहों में तू पलकें यूँ बिछाता क्यूँ है

पारसा जब क़ोई इंसाँ यहाँ मिलता ही नहीं
तू ज़मीं पर भला इंसान को लाता क्यूँ है

छाँव देते हैं मुसाफ़िर को शजर जो हर दिन
ऐ बशर आरियाँ तू उन पे चलाता क्यूँ है

तेरे इस इश्क़ का जब कोई तलबगार नहीं
जान की बाज़ी बता दिल तू लगाता क्यूँ है

ख़ुशनुमा सुब्ह जो लाते हैं बशर हर दिन, तू
बेसबब उन ही परिंदों को सताता क्यूँ है


हमको ख़्वाहिश नहीं है लाल-ओ-गुहर की मौला
पर निवालों के लिए हमको रुलाता क्यों है

उसको मंज़ूर नहीं प्यार तेरा जब मीना
आ के फिर याद वो दिन रात सताता क्यूँ है
-मीना भट्ट *सिद्धार्थ*
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एक दिन पहले

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