आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

एक और पेड़ काट दिया गया

                
                                                         
                            एक और पेड़ काट दिया गया
                                                                 
                            
पहले भी तो काटा था
और आगे भी काटेंगे
फिर क्यों जिक्र करते हैं
पेड़ कटने की
पेड़ ही तो है काट दिया
कभी पेड़ को गिड़गिड़ाते देखा है
जीवन की भीख मांगते देखा है
कभी उसका रुदन सुना है
कैसे सुनोगे ???
वो तो मूक खड़ा बेबस पेड़ है
पर जब भी कोई पेड़ काटा जाता है
कभी सोचा है कि
कितनों की यादें दम तोड़ती है
कितनों का बचपन जो उसके संग बड़े हुए थे
अचानक से खो जाता है
कितनों की महफिलें शामें जो उसके तले गुजारी पर अल्पविराम लग जाता है
शुद्ध हवा और छाया की तो बात मत करो
और उस खाली जगह को देख जो खालीपन महसूस होता है
कहने को तो एक पेड़ ही तो कटा है
पर अफसोस होता है
और हां प्रदूषण के लिए कभी मत रोना
बस विकास के नाम पर पुराने हरेभरे तंदूरुस्त पेड़ जरुर काटते रहना
 -सरिता सिंह
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
एक घंटा पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर