आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

उपदेशक दोहा

                
                                                         
                            धर्म-धर्म से लड़े तो , अघ से लड़ये कौन।
                                                                 
                            
सज्जन सुरक्षा कस हो, जब राजा ही मौन।।

कण-कण मुहे कट्टरता , यूं हुई है प्रवेश ।
कैसे सुरक्षित रहईं, सज्जन और स्वदेश।।

अल्ला ईश्वर एक है, भिन्न-भिन्न है नाम।
कोई मद को बियर तो ,कोई कहता जाम।।

बनो वीर हामिद बनो, बनो नहीं जयचंद।
जिसमें देशभक्ति नहीं, उससे रब भी रंज।।
 - राज कलयुगी प्रजापति
 
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
1 सप्ताह पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर