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हम भारत के लोग

                
                                                         
                            हम भारत के लोग अभी भी संविधान की शोभा है
                                                                 
                            
मुट्ठी भर लोगों के जेबों की सूखी सी मेवा हैं
जब उनकी प्रतिरोधी क्षमता न्यूनाधिक हो जाती है
तभी जेब से धीरे-धीरे मुट्ठी में आ जाती है
कहने को हम शक्ति केंद्र हैं सत्ताओं के उद्गम हैं
तकनीकी उपयोग हमारा करने में बे माहिर हैं
वे प्रायः उपयोग हमारा निज शस्त्रों सा करते हैं
फिर भी वे हैं ढीठ बड़े दम देश भक्ति का भरते हैं
निज दलीय स्वार्थों की ही बस देशभक्ति परिभाषा है
मुखर विरोध पक्ष तो सीधे देशद्रोह में आता है
परिभाषाएं स्वयं सृजित कर स्वयं व्याख्या वे करते कालिदास और विश्वनाथ से स्वयं ही वे दोनों बनते
केवल अच्छे श्रोता सबको सतत अहर्निश वांछित हैं
उद्यम प्रगतिशीलता से जाने क्यों सब आतंकित हैं
अभिशप्तों सा जीवन जी कर तुमको अंगीकार करें
स्वयं अभावों दुख दैन्यों को प्रारब्धों के नाम करें
सब प्रकार के कष्ट झेलकर अनुदिन जय जय कार करें इस प्रकार के शक्ति केंद्र हैं हम भारत के लोग
निजशक्ति के अभिज्ञान का बनता जाता योग
आओ आत्मज्ञान से जाने बला वलों का ज्ञान
आत्म केंद्रित बौद्धिकता से हो अपनी पहचान
-राम प्रकाश मिश्र वत्स
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एक महीने पहले

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