सारे पावन तीर्थ हमारे संस्कृति की जीवन रेखा
चिर संचित है युगों युगों से निज आदर्शों का लेखा
देश की चारों सीमाओं पर पावन चार धाम प्यारे
जिनकी कीर्ति कौमुदी से विस्मित हैं दिग दिगंत सारे
द्वादश ज्योतिर्लिंग शंभू के स्थापित भारत भर में कोटि-कोटि जन की आस्था के यश: कलेवर त्रिभुवन में सात मोक्षदाई नगरों से हम शाश्वत गौरवान्वित हैं
सुरसरि के पावन प्रवाह से हर्षित गर्वित पुलकित हैं
पावन यमुना का प्रवाह जब देव नदी से मिल जाता
वाणी के अविरल प्रवाह से तीर्थराज तब बन जाता
यज्ञ भूमि और शुचि संगम से तीर्थराज प्रयाग बना
प्राच्य और आधुनिक संस्कृति का विघ्न रहित सिरमौर बना
सारे तीर्थ सदा बसते हैं तीर्थपति के अंचल में
तीर्थों का नेतृत्व विराजे प्रयागराज के कण-कण में
इसी भांति काशी की महिमा भी अपूर्व है अनुपम है गौरीशंकर के निवास से अभिमंत्रित आलोकित है
यमुना तट स्थित ब्रजमंडल पावन वंशी के स्वर से
कण कण अद्यावधि आलोकित राधेश्याम के चरणों से उज्जैनी में महाकाल के अभिषेकों की स्वर लहरी
हर्षित प्रमुदित कर देती है मुक्ति मार्ग की वन प्रहरी
इस पावन भारत भूमि के तन में सारे तीर्थ बसें
अतः नित्य तेरे चरणों में सादर शिर शत वार झुके
-राम प्रकाश मिश्र वत्स
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