चाटुकारिता की बातों से कब जग का कल्याण हुआ प्रशंसकों के स्वार्थों को ही इससे नया विहान मिला
अत: कबीर की इस वाणी पर नेताओं विश्वास करो
निंदक को निअरे रखने का यदा कदा तो प्रयास करो
निंदा प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ नित्य बनाता है
वैश्विक संकट आने पर भी स्वास्थ्य सुरक्षा देता है
निंदक की परछाई से भी तुम जाने क्यों डरते हो
संगठनों की मजबूती का फिर कैसे दम भरते हो
यथा समय निर्भय होकर जो राय नहीं दे सकते हैं
कैसे वे जन जन आस्था का केंद्र बिंदु बन सकते हैं
पहले दलों के अंत: संगठनों में लोकतंत्र होगा
सत्ता के तब विविध क्षेत्र में सचमुच लोकतंत्र होगा
आज तो सत्ताएं ही इसको परिभाषित भी करती हैं
अपने स्वेच्छाचारों को भी लोकतांत्रिक कहती हैं
भारतीय संस्कृति में सचमुच लोकतंत्र मिल जाता है
सत्ता शासन जहां तपस्वी के समक्ष झुक जाता है
न्याय जहां सत्ता शासन का कभी न अनुगामी होता
शासक वहीं न्याय आसन के प्रति उत्तरदाई होता
जब प्रहलाद विरोचन को भी दंडित करवा देता है
तभी सुधन्वा ऋषि कुमार को अपना शासन लगता है लोकतंत्र की इस लीला में अभिनेता तुम सारे हो
एक ही थैली के प्रस्तर हो भार वर्ण में न्यारे हो
निर्वाचन के मौसम में बस व्यवसायिक हो जाते हो
शेष समय में स्वार्थों की बस लंबी दौड़ लगाते हो
देश बड़ा है व्यक्ति तुच्छ है यह कहने की बातें हैं
ऊंचा ओहदा पा जाने की याद में कटती रातें हैं
सबके अपने ताजे स्वारथ देशभक्ति की पन्नी में
गैरों को उपदेश पिलाते अमर कथा की शैली में
19वीं सदी की प्रजा नहीं है अब पूरे भारत भर में
सत्य वचन महाराज बोलकर जो खुशी मनावै घर-घर में छोड़ के आश्रय भावुकता का धरती पर कुछ काम करो
छठा महापातक है गरीबी उन्मूलन का प्रयास करो
सज्जन और ईमानदार शुचि परम भक्त हैं बहुतेरे
इसी पात्रता के दम पर क्या संसद के लगते फेरे
जनाधार है प्रथम वांछित जनहित सघन प्रयास करो
आर्त जनों के अश्रु पोछने का नित सफल उपाय करो
मधुर भोज से मिष्ठानों से स्वास्थ्य बिगड़ भी जाता है
अतः संतुलित भोजन से ही स्वस्थ रहा जा सकता है
सारी मानवता पर भी बस यही नियम लागू होता
उचित समन्वय नियमन से ही सब कुछ यथा रूप रहता
इस वैश्विक संकट बेला में दीनों पर दयालु बनकर
नूतन सृजन करो कुछ ऐसा उप अध्यायों में रचकर
निश्चल निर्विकार भावों से नित प्रतिजन कल्याण करो
इन्हीं दरिद्रों में नारायण सचमुच इन्हें प्रणाम करो
-राम प्रकाश मिश्र वत्स
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